अहोई अष्टमी की कहानी
अहोई अष्टमी हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो विशेष रूप से उत्तर भारत में माताओं द्वारा उनके बच्चों की दीर्घायु और कुशलता के लिए आशीर्वाद के लिए मनाया जाता है। “अहोई” शब्द “अहो” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “दिन” और “अष्टमी” उन महीनों के आठवें दिन को सूचित करता है (सामान्यत: हिंदू पंचांग के कार्तिक महीने का अष्टमी तिथि) जब यह उत्सव मनाया जाता है।
इस त्योहार की उत्पत्ति एक दर्दनाक कहानी से जुड़ी हुई है। किसी कदरिन गांव में एक महिला रहती थी जिनके पास सात पुत्र थे, लेकिन उन्हें एक बेटी की तलाश थी। एक दिन, जब उन्होंने कीचड़ से एक कुआंटा बना रही थी, तो उन्होंने भूमि के अंदर छिपी एक छोटी बच्ची छोटी बिल्लियों को अपाया। खेद और संवेदना से भरी, उन्होंने उस छोटी बिल्ली की मां की देखभाल करने का निर्णय किया और वायदा किया कि जब उनकी अपेक्षा पूरी हो जाएगी, तो वह उसे छोड़ देंगी।
वर्षों बीत गए, और आखिरकार, महिला को एक बेटी की प्राप्ति हुई। उन्होंने खुशी से अपने द्वारा दी गई अपेक्षा का आदान-प्रदान किया। लेकिन दुःखद घटना यह थी कि, भूल कर एक पल के लिए, उन्होंने छोटी बिल्ली की मां के कुआंटे को खोल दिया और उसे छोड़ दिया। दुःखिनी, उन्होंने अपनी भूल का अहसास किया और क्षमा के लिए प्रार्थना की।
उन्होंने अपनी भूल को सुधारने का आदान-प्रदान करने के लिए उस खोज में निकली। एक लम्बी और कठिन यात्रा के बाद, उसने अंत में उसे पाया और क्षमा मांगी, अपनी पश्चाताप की गहराईयों का वर्णन किया। महिला की ईमानदारी और उसके बच्चों के प्रति समर्पण को देखकर, छोटी बिल्ली की मां ने उसे माफी मांगने की अनुमति दी।
उसके बाद से, महिला ने हर साल कार्तिक महीने के अष्टमी तिथि को अहोई माता की विशेष पूजा करने का संकल्प किया, अपने बच्चों की कल्याण और समृद्धि